pdf BP 17-1-3-02 BT Sahansilata
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"जिनकी कामनायुक्त भक्ति है, वे क्रोधको जय नहीं कर सकते । केवल विवेकके द्वारा क्रोधको जय नहीं किया जा सकता । विषयोंके प्रति आसक्ति कुछ ही क्षणमें विवेकको निष्क्रियकर अपने राज्यमें क्रोधको स्थान प्रदान करती है।"
वर्ष—१७ • संख्या—१-३ • प्रबन्ध क्रमांक—२
सहनशीलता और श्रीभक्तिविनोद
(श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की तिरोभाव तिथि के उपलक्ष्य में)
श्रील भक्तिविनोद ठाकुरका वाणी-वैभव